तो मित्रों, भारत यात्रा के दूसरे चरण में आपका स्वागत है। आप सभी को पिछले चरण का वर्णन और संबन्धित फोटो और वीडियो पसंद आए इसके लिए आप सभी का धन्यवाद। तो मैं दूसरे चरण की योजना बना कर तैयार हो गया था और सबसे बड़ी बात ये थी कि इस यात्रा में मुझे एक साथी के रूप में अर्जुन मिल गया था। हमें डिब्रूगढ़ पहुंचना था। अब मैं दिल्ली में था और अर्जुन गाँव में, तो तय हुआ कि अर्जुन ट्रेन से जाएगा और मैं दिल्ली से फ्लाइट पकड़ूंगा। अर्जुन एक दिन पहले पहुंच कर बेताल को कलेक्ट करेगा, आवश्यक रिपेयरिंग कराएगा और मेरे डिब्रूगढ़ पहुंचते ही हमारी यात्रा प्रारंभ हो जाएगी। मैंने ये भी तय किया कि इस बार कहीं भी होटल में नहीं रूकना है बल्कि टेंट का सदुपयोग किया जाएगा। (अपनी मोटरसाइकिल होंडा यूनीकार्न 150 सीसी का नाम मैंने बेताल रखा है।)
तो योजनानुसार अर्जुन समय से डिब्रूगढ़ पहुंच तो गया मगर बजाय बेताल को लेने के श्रीमानजी अपने किसी पड़ोसी से मिलने शिलापठार चले गए और अगले दिन का सदुपयोग स्थानिय घुमक्कड़ी के लिए कर लिए। जिस दिन मुझे डिब्रूगढ़ पहुंचना था उस दिन अर्जुन बेताल को लेने निकला। मैं करीब बारह बजे डिब्रूगढ़ उतरा लेकिन अब समझ में नहीं आ रहा था कि अब कहाँ जाएं क्योंकि अर्जुन बेताल को लेने डिब्रूगढ़ से करीब पचास साठ कीलोमीटर दूर गया हुआ था। उपर से जब रेलवे स्टेशन या एयरपोर्ट से बाहर निकलो तो आटो टैक्सी वाले ऐसे हमला करते हैं कि उसे देख कर सेना भी शर्मा जाय। उनकी शानदार व्यूह रचना से निकलना एक प्रोजेक्ट ही हो जाता है। जैसे तैसे बाहर निकल कर बगल में रामबाड़ी बाजार पहुंचा और एक छोटे से रेस्तरां में चावल, मछली और आलू भुजिया का शानदार लंच किया और प्रतीक्षा करने लगा।
अर्जुन को बेताल ले कर आते आते रात के सात बज गए और पूर्वोत्तर में शाम के सात बजने का मतलब दिल्ली के नौ समझ सकते हैं। उस समय बेताल के रिपेयरिंग की कोई संभावना नहीं थी सो उसी समय बोगीबिल पुल पार किया और शिलापठार के लिए निकल पड़े। करीब ड़ेढ़ घंटे में अर्जुन के उसी पड़ोसी के घर पहुंचे जिनका जिक्र ऊपर आया है। उस सज्जन ने बड़े प्रेम से हमें भोजन कराया और सोने की भी व्यवस्था की। अगले दिन की कथा अगले भाग में।
तब तक के लिए जै जै